Stock Warrants Kya Hota Hai: Warrants क्या होते हैं? आसान भाषा में जानिए Warrants और Shares व Options में अंतर, फायदे, रिस्क, Premium, Exercise Price और इन्हें कैसे खरीदें पूरी जानकारी उदाहरण के साथ।
Table of Contents
Warrants की Important Terms
Warrant को समझने के लिए पहले आपको कुछ Warrants की Important Terms को समझना बहुत जरुरी है जिससे आपको वररेन्ट्स के कांसेप्ट बारे के स्पष्ट रूप से समझ पाए और कोई समस्या न हो |
Strike Price / Exercise Price: यह वह प्राइस या दाम होता है जिस पर warrant holder भविष्य में शेयर खरीद सकता है। उदाहरण के लिए: अगर किसी warrant का strike price ₹120 है, तो holder शेयर ₹120 में ही खरीदेगा, भले ही market price ₹150 हो।
Expiry Date / Maturity Date: वह अंतिम तारीख जिसके बाद warrant बेकार (worthless) हो जाता है। उदाहरण: अगर warrant की expiry 3 साल है, तो holder को 3 साल के अंदर शेयर खरीदना होगा।
Premium (Warrant Price): Warrant को खरीदने के लिए जो शुरुआती कीमत दी जाती है उसे Warrants प्रीमियम कहते है।उदाहरण के लिए अगर किसी warrant का premium ₹10 है। और आप 100 वररेन्ट्स खरीदते है तो आपको 100 x 10 = 1000 रूपए देने होगें |
Leverage Effect: Warrants छोटे निवेश से ज्यादा मुनाफा देने की क्षमता रखते हैं, क्योंकि थोड़े पैसों में future में शेयर खरीदने का अधिकार मिलता है।
Dilution: जब warrants exercise होते हैं, तो नए शेयर issue होते हैं जिससे मौजूदा शरहोल्डर्स की ownership percentage घट सकती है। उसे ही हम शेयर डिलूशन कहते हैं |
Warrants Exercise: जब को निवेशक वारंट्स के बदले शेयर खरीदता है तो इसे Warrant Exercise कहा जाता है। उदाहरण के लिए अगर आपके पास 100 वारंट्स है और अपने Expiry से पहले 100 शेयर खरीद लिए तो उसको ही हम Warrants को Exercise करना कहते है |
Warrants क्या होते हैं?
Warrant एक Financial Instrument है जो धारक (Holder) को यह अधिकार (Right) देता है कि वह किसी कंपनी के शेयर को एक तय कीमत (Exercise Price / Strike Price) पर और एक निश्चित समयावधि (Expiry Date) के अंदर खरीद सके।
कंपनी Warrants को अक्सर अपने investors को आकर्षित करने के लिए issue करती है, ताकि वे भविष्य में कंपनी के शेयर खरीद सकें।
आसान भाषा में उदाहरण
मान लीजिए –
- किसी कंपनी का शेयर आज ₹50 का है।
- कंपनी एक Warrant जारी करती है, जिससे आप अगले 2 साल तक ₹60 में वही शेयर खरीद सकते हैं।
अब देखें –
- अगर शेयर का भाव ₹100 हो गया – आप ₹60 में खरीदेंगे और मार्केट में ₹100 में बेच देंगे – ₹40 का फायदा।
- अगर शेयर का भाव ₹40 रह गया – आप Warrant का इस्तेमाल नहीं करेंगे क्योंकि मार्केट में सस्ता मिल रहा है – Warrant बेकार हो जाएगा।
ध्यान रखने वाली बातें
- Demat Account जरूरी है – Warrants भी Electronic Form में रखे जाते हैं।
- Premium देना पड़ता है – Warrant खरीदने के लिए आपको Premium चुकाना होगा।
- Expiry Date ध्यान रखें – Expiry के बाद Warrant बेकार हो जाता है।
- Risk ज़्यादा है – अगर शेयर Strike Price तक नहीं पहुँचा तो Premium डूब जाएगा।
Warrants के फायदे (Benefits)
Warrants खरीदने (निवेशक) और बेचने वाले (इशू करनेवाला) दोनों का ही अपना अपना फायदा होता है |
निवेशकों के लिए (For Investors)
कम पैसों में ज़्यादा मौका (Leverage): Warrants खरीदने के लिए निवेशक को शेयर के मुकाबले बहुत कम पैसा देना पड़ता है। अगर शेयर की कीमत बढ़ती है, तो कम पूंजी में भी बड़ा मुनाफा मिल सकता है।
High Profit Potential: अगर शेयर का भाव Strike Price से ऊपर चला जाए तो बहुत अच्छा रिटर्न मिलता है।
लंबी अवधि का निवेश (Long-Term Horizon): Warrants आमतौर पर 1–5 साल तक चलते हैं – निवेशक को समय मिलता है सही मौके का।
Trading का मौका: कई Warrants स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड होते हैं निवेशक उन्हें बीच में खरीद-बेच भी सकते हैं।
कंपनी के लिए (For Companies)
Fund Raising Tool: कंपनी भविष्य में शेयर बेचकर पैसा जुटा सकती है।
Debt Instruments को आकर्षक बनाना: Bonds/Debentures के साथ Warrants जोड़कर कंपनी निवेशकों को आसानी से आकर्षित करती है।
Immediate Dilution से बचाव: Warrants से कंपनी को तुरंत नए शेयर जारी नहीं करने पड़ते – Dilution बाद में होता है।
Promoters/Investors को Ownership बढ़ाने का मौका: Promoters या Strategic Investors Warrants के ज़रिए बाद में हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं।
Warrants क्यों जारी किए जाते हैं?
फंड जुटाने (Fund Raising):
निवेशकों को आकर्षित करने के लिए
Debenture/Bond के साथ Sweetener की तरह
लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट का मौका देने के लिए
यह भी पढ़े: Primary Aur Secondary Market क्या होता है? कैसे निवेश करें ? प्रकार, फायदे आदि
Warrants के प्रकार
- Equity Warrants – शेयर खरीदने का अधिकार देते हैं।
- Covered Warrants – बैंक/फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन्स द्वारा जारी, शेयर/इंडेक्स/करेंसी पर आधारित।
- Detachable Warrants – बॉन्ड/डिबेंचर से अलग होकर मार्केट में ट्रेड हो सकते हैं।
- Non-Detachable Warrants – बॉन्ड से अलग नहीं किए जा सकते।
Warrants और Options में फर्क
आधार | Warrants | Options |
---|---|---|
जारीकर्ता | कंपनी जारी करती है | एक्सचेंज/मार्केट में बनते हैं |
अवधि | लॉन्ग-टर्म (1–5 साल) | शॉर्ट-टर्म (1–3 महीने) |
उद्देश्य | फंड जुटाना | Hedging या ट्रेडिंग |
Dilution | नए शेयर बनने से हिस्सेदारी dilute होती है | कोई dilution नहीं |
ट्रेडिंग | कभी-कभी लिस्टेड होते हैं | हमेशा एक्सचेंज पर लिस्टेड |
Warrants की मुख्य विशेषताएँ
- लॉन्ग-टर्म निवेश का विकल्प
- लेवरेज (कम पैसों में ज्यादा कंट्रोल)
- नए शेयर जारी होने पर Dilution
- कुछ Warrants मार्केट में खरीदे-बेचे जा सकते हैं
Warrants कैसे खरीदें ?
Stock Exchange के ज़रिए: कुछ Warrants NSE / BSE जैसे स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड होते हैं।
Company Allotment के ज़रिए: कई बार कंपनी Warrants को Promoters / (QIBs) / Strategic Investors को Issue करती है। इस Case में Retail Investors सीधे Apply नहीं कर सकते।
Rights Issue / Bonus के साथ: कुछ कंपनियाँ Existing Shareholders को Rights Issue या Bonus के साथ Warrants देती हैं। इसका फायदा केवल उन्हीं को मिलेगा जिनके पास पहले से कंपनी के Shares हैं।
IPO / Preferential Allotment में: कई बार Warrants IPO या Preferential Issue का हिस्सा होते हैं।यहाँ निवेशकों को Company से सीधे Warrants मिलते हैं।
Warrants में रिस्क
Expiry Risk (बेकार हो जाने का खतरा): अगर Expiry Date तक शेयर की कीमत Strike Price से ऊपर नहीं गई – Warrant Worthless (शून्य वैल्यू) हो जाएगा।
Market Risk (बाज़ार का उतार-चढ़ाव): Warrants की कीमत शेयर के प्राइस पर निर्भर करती है। शेयर अगर गिरे तो Warrant की वैल्यू भी तुरंत घट जाती है।
Volatility Risk (ज्यादा उतार-चढ़ाव): Warrants शेयर से भी ज़्यादा volatile होते हैं – यानी इनके दाम तेजी से ऊपर-नीचे हो सकते हैं।
Liquidity Risk (खरीदार/विक्रेता न मिलना): हर Warrant मार्केट में actively ट्रेड नहीं होता। कभी-कभी Warrant बेचने पर खरीदार ही नहीं मिलता।
Dilution Risk (हिस्सेदारी घटने का खतरा): जब Warrants एक्सरसाइज़ होते हैं, तो कंपनी नए शेयर जारी करती है – इससे मौजूदा शेयरहोल्डरों की हिस्सेदारी dilute हो जाती है।
Leverage Risk (कम पैसों में ज्यादा Exposure): Warrants में leverage मिलता है – फायदा बड़ा हो सकता है, लेकिन नुकसान भी उतना ही बड़ा हो सकता है।
Warrants vs Shares vs Options
Feature / Point | Shares (शेयर) | Warrants (वारंट्स) | Options (ऑप्शन्स) |
---|---|---|---|
Meaning | कंपनी में Ownership (हिस्सेदारी) | Future में तय कीमत पर शेयर खरीदने का अधिकार | Future में तय कीमत पर शेयर खरीदने/बेचने का Contract |
Issued by | कंपनी (IPO/Secondary Market) | कंपनी (Fund Raising के लिए) | Stock Exchange (Derivatives Market) |
Ownership | तुरंत Ownership और Voting Rights मिलते हैं | Ownership नहीं मिलता, सिर्फ Share खरीदने का Future Right मिलता है | Ownership नहीं मिलता, सिर्फ Trading Contract होता है |
Life / Duration | हमेशा (जब तक शेयर कंपनी में Listed है) | लंबी अवधि (1–5 साल तक) | छोटी अवधि (कुछ दिन या महीनों तक) |
Risk | शेयर गिरने से Value घटती है लेकिन Zero नहीं होती | Expiry तक Strike Price न छूने पर पूरी Value Zero हो सकती है | Expiry तक सही Price Movement न होने पर Premium Zero हो सकता है |
Return Potential | Moderate (Direct Price Change) | High (कम पैसों में Leverage) | High लेकिन Short-Term और Risky |
Trading | हाँ (Stock Market में) | हाँ (कुछ Warrants Exchange पर Trade होते हैं) | हाँ (Options Derivatives Exchange पर Trade होते हैं) |
Example | आपने ₹100 में शेयर खरीदा → अगर ₹150 हुआ तो Profit ₹50 | Strike Price ₹120, Premium ₹10, Market Price ₹200 → Profit ₹70 | Call Option खरीदा (Strike ₹120, Premium ₹10), Market Price ₹150 → Profit ₹20 (₹30–₹10) |
FAQs
Warrant और Option में क्या फर्क है?
Options एक्सचेंज द्वारा बनाए जाते हैं और छोटे समय के लिए होते हैं।
Warrants कंपनी खुद जारी करती है और आमतौर पर लंबी अवधि (1–5 साल) के लिए होते हैं।
Exercise Price (Strike Price) क्या है?
वह तय कीमत जिस पर Warrant को इस्तेमाल करके शेयर खरीदे जा सकते हैं।
Expiry Date क्या है?
वह आखिरी तारीख जिसके बाद Warrant बेकार (Worthless) हो जाता है।
Warrant Premium क्या होता है?
Warrant को खरीदने के लिए जो कीमत दी जाती है, उसे Warrant Premium कहते हैं।
Warrants में निवेश का फायदा क्या है?
कम पैसों में ज़्यादा फायदा (Leverage)
लंबी अवधि तक मौका
ट्रेडिंग का ऑप्शन
हाई प्रॉफिट पोटेंशियल
Warrants में रिस्क क्या है?
अगर शेयर Strike Price से नीचे रह गया तो Warrant की वैल्यू Zero हो जाएगी।
Time Value Expiry के साथ खत्म हो जाती है।
High Volatility से प्राइस बहुत तेज़ी से बदल सकता है।
क्या Warrant को ट्रेड किया जा सकता है?
हाँ, कई Warrants स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड होते हैं और इन्हें शेयरों की तरह खरीदा-बेचा जा सकता है।
अगर Warrant Expiry तक Exercise न किया जाए तो क्या होगा?
Expiry Date के बाद Warrant बेकार हो जाएगा और उसकी वैल्यू Zero हो जाएगी।
Warrant और Share में क्या फर्क है?
Share = कंपनी में Ownership देता है।
Warrant = सिर्फ Share खरीदने का Future का अधिकार देता है।
क्या Warrant हमेशा फायदेमंद होता है?
नहीं, फायदा तभी है जब शेयर प्राइस Strike Price से ऊपर चला जाए। वरना पूरा Premium डूब सकता है।