Earnings Per Share क्या होता है ? प्रकार, सूत्र, महत्वपूर्ण और उदाहरण से समझें

EPS Kya Hota Hai: अगर आप स्टॉक मार्केट में निवेश करतें है तो आपने Earnings Per Share (EPS) In Stock Market के बारे में सुना होगा | EPS हमें बताता है की कोई भी कंपनी अपने एक शेयर पर कितना रूपए कमाती है | EPS ratio से हम P/E रेश्यो निकलते है इससे हमें शेयर overvalued या undervalue है यह पता चलता हैं | इसके साथ EPS ये दर्शाता है की कंपनी का मुनाफा समय के साथ बढ़ रहा है या घट रहा है

Earnings Per Share (EPS) क्या है?

Earnings Per Share (EPS) प्रति शेयर आय यह एक वित्तीय सूचकांक (financial metric) है जो बताता है कि किसी कंपनी ने अपने प्रत्येक सामान्य शेयर (common share) पर कितना लाभ कमाया है।

उदाहरण: मान लो कोई कंपनी ₹100 का मुनाफा कमाती है और उसके 10 शेयर हैं। तो हर शेयर पर मुनाफा = ₹100 ÷ 10 = ₹10 प्रति शेयर। यही कहलाता है EPS

EPS का सूत्र

EPS = \frac{\text{Net Income} - \text{Preferred Dividends}}{\text{Weighted Average Shares Outstanding}}
  • Net Income: कंपनी का टैक्स और खर्च घटाने के बाद का असली मुनाफा।
  • Preferred Dividends: पहले घटा दिया जाता है, क्योंकि EPS केवल सामान्य शेयरधारकों (Common Shareholders) के लिए होता है।
  • Weighted Average Shares: साल/तिमाही में शेयरों की औसत संख्या (क्योंकि बीच में शेयर खरीदे-बेचे या नए शेयर जारी हो सकते हैं)।

EPS के प्रकार

Basic EPS (बेसिक EPS): यह सबसे common EPS है इसमें कंपनी का कुल शुद्ध लाभ (Net Profit) सामान्य शेयरों (Common Shares) पर बाँट दिया जाता है। लेकिन इसमें यह नहीं देखा जाता कि आगे शेयरों की संख्या बढ़ सकती है।

Diluted EPS (डायल्यूटेड EPS): यह वे EPS है जिसमें कंपनी के संभावित शेयरों (Potential Shares) का असर भी शामिल किया जाता है। इसका मतलब यह है कि अगर भविष्य में कंपनी के कुछ convertible securities (जैसे – convertible debentures, stock options, warrants, convertible preference shares) equity shares में बदल दिए जाएँ, तो शेयरों की संख्या बढ़ जाएगी।

जब शेयर बढ़ जाते हैं तो प्रति शेयर मुनाफा (EPS) घट जाता है

Reported EPS (रिपोर्टेड EPS): जब कंपनी अपने Financial Statements में जो EPS बताती है, उसे Reported EPS कहते हैं।

Adjusted EPS (एडजस्टेड EPS): इसमें कंपनी एक-बार वाले खर्चों/आय (One-time items) को निकाल देती है, जैसे: मुक़दमे का खर्च, संपत्ति बेचने से लाभ/हानि, रीस्ट्रक्चरिंग खर्च ताकि कंपनी की असल और स्थायी कमाई (core earnings) दिख सके।

Cash EPS (कैश EPS): इसमें Net Profit की जगह Operating Cash Flow (यानी नकद से हुई कमाई) का इस्तेमाल होता है। यह बताता है कि कंपनी वास्तव में नकद में प्रति शेयर कितना कमा रही है।

Trailing EPS (पिछला EPS): पिछले 12 महीनों (Last 12 months – LTM) के हिसाब से निकाला गया EPS। यह कंपनी का पिछला प्रदर्शन दिखाता है।

Forward EPS (भविष्य का EPS): कंपनी या विश्लेषकों (Analysts) के अनुमान (Projections) के आधार पर अगले 12 महीनों का EPS। यह कंपनी का भविष्य का संभावित मुनाफा बताता है।

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EPS क्यों महत्वपूर्ण है?

  • EPS हमें बताता है कि कंपनी कितनी लाभदायक (profitable) है।
  • निवेशक इसका उपयोग शेयर की क़ीमत समझने के लिए करते हैं।
  • इसे P/E Ratio (Price/Earnings Ratio) निकालने में काम में लिया जाता है।
  • EPS जितना अच्छा होगा, उतना ही शेयरधारकों के लिए फायदेमंद माना जाता है।

EPS कब (When) इस्तेमाल करें?

  • जब आप किसी कंपनी का Profitability देखना चाहते हैं।
  • जब आप एक ही उद्योग (Industry) की कंपनियों की तुलना करना चाहते हैं।
  • जब आप P/E Ratio निकालना चाहते हैं।
  • जब आप देखना चाहते हैं कि कंपनी का मुनाफा समय के साथ बढ़ रहा है या घट रहा है

EPS किन (Which) मामलों में उपयोगी है?

  • निवेश निर्णय लेने के लिए (जैसे कंपनी profitable है या नहीं)।
  • डिविडेंड क्षमता समझने के लिए (EPS अच्छा है तो Dividend देने की संभावना ज़्यादा)।
  • शेयर buyback या dilution के प्रभाव को समझने के लिए।
  • Analysts reports में Future Earnings का अनुमान लगाने के लिए।

EPS कब नहीं (When NOT) इस्तेमाल करें?

  • जब आप अलग-अलग industries की कंपनियों की तुलना कर रहे हों (क्योंकि हर सेक्टर का profit margin अलग होता है)।
  • जब कंपनी पर बहुत ज़्यादा कर्ज़ (Debt) हो → EPS अच्छा दिख सकता है लेकिन risk ज़्यादा रहेगा।
  • जब कंपनी ने एक बार का लाभ/नुकसान (One-time gain/loss) कमाया हो → EPS भ्रामक हो सकता है।
  • जब आपको कंपनी का Cash Flow देखना हो → EPS profit दिखाता है, cash position नहीं।
  • सिर्फ EPS देखकर निवेश करना खतरनाक है → हमेशा P/E Ratio, Debt Ratio, Revenue Growth आदि के साथ देखना चाहिए।

EPS की मुख्य Limitations (सीमाएँ)

Profit ही सबकुछ नहीं होता: EPS सिर्फ per share earning दिखाता है। लेकिन कंपनी का कैश फ्लो, कर्ज़ (debt), बिज़नेस ग्रोथ आदि इसमें शामिल नहीं होते।मतलब EPS अच्छा हो सकता है, लेकिन कंपनी की financial health कमजोर भी हो सकती है।

शेयर संख्या बदलने से गड़बड़ी: अगर कंपनी Shares Buyback करे (यानी अपने शेयर वापस खरीदे) तो शेयरों की संख्या कम हो जाएगी और EPS अपने आप बढ़ जाएगा, भले ही असली मुनाफा न बढ़ा हो। इससे निवेशकों को गलत तस्वीर मिल सकती है।

Accounting Tricks का असर: EPS Net Profit पर आधारित है। लेकिन Profit को कंपनी अलग-अलग accounting policies (जैसे depreciation method, tax treatment) बदलकर manipulate कर सकती है।

Industry Comparison मुश्किल: EPS सिर्फ एक absolute number है। विभिन्न उद्योगों (Industries) में कंपनियों के EPS को सीधे-सीधे compare नहीं किया जा सकता।

Inflation / Economy का असर नहीं दिखता: EPS सिर्फ कंपनी का आंकड़ा बताता है।लेकिन यह महंगाई, बाजार की स्थिति, future risks जैसी चीजें नहीं दिखाता।

Growth नहीं दिखाता: EPS से यह नहीं पता चलता कि कंपनी आगे grow करेगी या नहीं। इसके लिए Forward EPS, Revenue Growth, Cash Flow आदि भी देखना ज़रूरी है।

Debt (कर्ज़) को नजरअंदाज़ करता है: दो कंपनियों का EPS समान हो सकता है, लेकिन एक कंपनी बहुत ज्यादा कर्ज़ में हो और दूसरी बिना कर्ज़ के हो।EPS इसमें अंतर नहीं बताता।

निष्कर्ष (Conclusion)

EPS (Earnings Per Share) किसी कंपनी का प्रति शेयर कमाई (Profit per Share) को दर्शाता है। इससे आप कंपनी का Profitability, P/E Ratio पता लगा सकते है और अलग – अलग इंडस्ट्री की तुलना भी कर सकते है | लेकिन ध्यान रहे की EPS अकेले सबकुछ नहीं बताता। यह Debt, Cash Flow, Growth और Accounting Tricks को reflect नहीं करता। इसलिए निवेश निर्णय लेते समय EPS के साथ P/E Ratio, Cash Flow, Debt Levels और Growth Prospects भी देखना भी बहुत ज़रूरी है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

EPS क्या है ?

EPS (Earnings Per Share) हमें बताता है कि कंपनी हर सामान्य शेयर पर कितना मुनाफा कमा रही है।

EPS कैसे निकाला जाता है ?

EPS = (Net Income−Preferred Dividends​) / Weighted Average Shares Outstanding

EPS क्यों महत्वपूर्ण है?

यह कंपनी की Profitability मापता है।
निवेशकों को Valuation और Investment Decision लेने में मदद करता है।
P/E Ratio निकालने के लिए उपयोग होता है।

EPS के कितने प्रकार होते हैं?

EPS मुख्या रूप से 7 प्रकार का होता है ?
Basic EPS
Diluted EPS
Adjusted EPS
Reported EPS
Cash EPS
Trailing EPS
Forward EPS

Basic और Diluted EPS में क्या अंतर है?

Basic EPS → साधारण शेयरों (Common Shares) पर मुनाफा।
Diluted EPS → संभावित नए शेयर (options, warrants, convertible bonds) जोड़कर प्रति शेयर मुनाफा।

Good EPS किसे कहते हैं ?

Good EPS का कोई तय मानक नहीं है। यह कंपनी के Industry Average, Growth Rate और Historical Performance पर निर्भर करता है।

क्या EPS ज़्यादा होना हमेशा अच्छा होता है?

ज़रूरी नहीं। EPS बड़ा हो सकता है लेकिन: कंपनी पर बहुत कर्ज़ हो, Cash Flow कम हो या Growth न हो ऐसे में EPS misleading हो सकता है।

EPS और P/E Ratio का क्या संबंध है?

P/E बताता है कि निवेशक प्रति ₹1 कमाई के लिए शेयर के भाव में कितना भुगतान कर रहे हैं।

EPS कब भरोसेमंद नहीं होता?

जब कंपनी Buyback करे → शेयर घटने से EPS बढ़ जाता है।
जब One-time gains/losses हों।
जब Accounting Policies बदलकर Profit दिखाया जाए।

EPS किन-किन रिपोर्ट्स में मिलता है?

EPS कंपनी के Quarterly Results (तिमाही परिणाम) और Annual Report (वार्षिक रिपोर्ट) में मिलता है।

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